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हमारे देश में चुनाव शाश्वत है, क्योंकि हम लोकतंत्र के सच्चे और सबसे बड़े ध्वज वाहक जो हैं।जो सबसे बड़ा विषय वस्तु चुनावों में हावी रहता है वो है 'चाय', खासकर के 2014 से तो यह विषय सर्वोच्च शिखर पर है। चुनाव के समय सभी बड़े नेता चाय में अपनी राजनीति रूपी दूध और शक्कर को स्वादानुसार प्रयोग करते रहते हैं ताकि बढ़िया कड़क जीत की सुस्वादु चाय तैयार हो सके।खैर, बंगाल में चुनाव है और वहाँ भी यह विषय अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुका है।हाल ही में जो चाय के साथ नई नेत्री ने अपना गठबंधन किया है वो हैं वहाँ की वर्तमान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी।
इसी चाय और चुनाव के परस्पर सम्बंध को संदर्भित करते हुए मैंने "चाय और चुनाव" शीर्षक के साथ कविता लिखी है....
"चाय और चुनाव"
मेरी समस्या,
तुम्हारी समस्या
रमुआ, बुधिया और
खलिफवा की समस्या,
उनके बैल, उनके खेत और
उनकी बछिया की समस्या
कभी खत्म नहीं होगी;
उसको जात-पात
धर्म-कुकर्म, आदि-अनादि
फलना-ढिमकना के आँच पर
जुमलों के दूध में
सत्ता और शक्ति के शक्कर में
घोलकर
वोटनुमा कप में डालकर
नेता जी उसे पी जायेंगे
चुनाव को चाय बूझकर;
लेकिन
हमसब की समस्या बची रहेगी
जस का तस
जैसे चाय पीने के बाद
अंत में,
कप के सतह पर
बच जाती है, चायपत्ती!
Waah Bahut badhiya 👏👏
ReplyDeleteबेहतरीन
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