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आएगा तो मोदी हीं पार्ट-1(एक प्रकार का व्यंग्य)
नोट-पार्ट टू के इन्तेजार में न रहें,यह एक जुमला भी हो सकता है।
एक समय की बात है।एक कौआ था,उसका नाम था कलुआ कौआ।एक दिन राजस्थान से उड़ते-उड़ते गुजरात पहुँच गया।वो गुजरात अमिताभ बच्चन के उस डायलॉग को बार-बार सुनकर आया था जिसमें वो कहते हैं कि "कुछ दिन तो गुजारो गुजरात में"।एक दिन इस बात को सुनते-सुनते वो कौआ अकुता गया और अपने लंबे चोंच में अपने अमेरिकन टूरिस्टर का ट्राली टांग के गुजरात कि ओर उड़ान भर लिया।
कमला पसंद को अपने चोंच के एक कोने में दबाकर जब उस कलुवे कौवे ने उड़ान भरी तो वह अपने आगे के पिलाना को सोंच-सोंच कर काफी भावविभोर हो गया।उसे लगा कि भैया गुजरात एक मॉडल स्टेट है कहीं पंद्रह लाख मिलने वाला कांड वहीं से शुरू हुआ हो और अब जब वो गुजरात जा हीं रहा है तो शायद उसे उसके 15 लाख से के भी दर्शन हो जायें।ये सब सोंचकर कौआ अपने आप को मोदी जी का भक्त घोषित कर चुका था।
कौवा अपने मन में दो-दो क्विंटल के लड्डू फोड़ते हुए जा रहा था तो उसके उड़ान के क्रम में,सूर्य भगवान के ताप का वोल्टेज हाई होने के कारण, उसके अंदर का सारा पानी पसीना बन के ठीक उसी प्रकार निकल चुका था,जिस प्रकार से सारे भारतीय "भगोड़े" व्यवसायी यहाँ के बैंकों से लोन लेकर और देश छोड़कर देश से निकल चुके हैं ।लगातार पसीना चलने के कारण जब उसे प्यास लगी तब उसने अपने ग्लूकॉन-डी से भरे मिरिंडा की बोतल में झाँका,जिसे वो अपने पंख के पिछले शिरे से लटकाए हुए था।बोतल की ओर देखते हीं उसे यह एहसास हुआ कि का बोतल कई मिल पहले हीं धरती-लोक को प्रस्थान कर चुका है और अबतक तो उस बोतल के अंदर भरा हुआ ग्लूकॉन-डी किसी खेत का ग्लूकोच बढ़ा रहा होगा।इस दृश्य को देखर के उसने अपने भौवें सिकोड़े और चोंच को अपने ललाट तक सटाने का अनायास कोशिस करते हुए उसने अपनी गति सीमा को बढ़ाने केलिये अपना एक्सीलेरेटर को पाँच नंबर गेयर पर कर दिया।
वह ऊपर में उड़ते-उड़ते अपने आप को ऑटो पायलट मोड में डालकर पानी की तलाश में नीचे देखने लगा तो उसे कुछ तरल पदार्थ दिखी नहीं, क्योंकि गुजरात एक ड्राई स्टेट है।पुनः पानी के तलाश में इधर-उधर देखते हुए उसने अपने माथे से होकर चोंच पर पहुँच चुके पसीने को खादी के रुमाल से पोंछकर जैसे हीं रुमाल हटाया तो उसे एक घड़ा दिखाई दिया।घड़े को देखते हीं उसने अपने आप को ऑटो पायलट मोड से हटाकर घड़े के ऊपर लैंड करने की तैयारी करने लगा।
घड़े के ऊपर लैंड करने के बाद उसे पता चला कि ये घड़ा भी अब ड्राई हो चला है लेकिन इसमें अभी कुछ जल के बून्द शेष हैं और इससे पहले कि पानी खत्म हो जाए उसने अपने दादाओं-परदादाओं के द्वारा अपनाई गई ट्रिक जिसपर सभी कौआ समाज गर्व करता है, उसको अपनाया और आस-पास में कंकड़ ढूंढने लगा।लेकिन उसे पता नहीं था कि गुजरात एक विकसित राज्य है इंडिया जैसे देश से भी ज्यादा विकसित और वहाँ के लोग व्यावसायिक प्रवृति के होते हैं तो वहाँ पर कंकड़-पत्थर भी आसानी से और मुफ़्त में नहीं मिलते।चारो तरफ फुदकने के बाद जब निराशा हीं हाँथ लगी(परन्तु उसके हाँथ होते नहीं हैं फिर भी) उसे निराशा उसके हाँथ हीं लगी, तो उस चालक कलुआ कौवे ने बिना समय व्यतीत करते हुए उसने पास में ही हो रही चुनावी रैली से आते जुमलों की आवाज को पककर उस घड़े में जुमले पर जुमले डालने लगा और डालते-डालते जब थक गया फिर भी घड़े का पानी ऊपर नही आया तो उस कौवे ने,भारी झोला जैसे अपने चोंच को लटकाते हुए घड़े के अंदर झाँक'कर अपने मन में बोला "पानी क्यों नहीं आ रहा है?
तभी अंदर से आवाज आई चाहे कुछ भी करलो पानी नहीं आने वाला उपर सिर्फ़.......
"आएगा तो मोदी हीं"।।
मस्त लिखे हो मारुत जी।
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।ऐसे ही प्रेम रूपी प्रतिक्रिया देते रहिए।सहयोग बना रहे बस।
Deleteशानदार मारुति
ReplyDeleteधन्यवाद भइया जी।प्रेम बना रहे।नमस्कार।
DeleteMst ba re
ReplyDeleteशुक्रिया मेरे भाई।
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