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Thursday, 9 May 2019

"बकवास"


फ़ोटो-साभार

 "निर्धन मनुष्य एक अमीर मनुष्य की अपेक्षा ज्यादा खुश रहता है"।

उपर्युक्त कथन जो है उसे अगर हम गणित के तराजू पर तौलें तो वहाँ पर यह कथन चार हजार प्रतिशत गलत साबित होगा।यह कथन अपने आप में हीं विरोधाभासी है।खुद से सोचिये कि अगर आपके पास एक दिन के लिए भी खाने-पीने के लिए कुछ न हो और आपको उसके लिए भीख माँगना पड़े और एकदिन आपके पास दुनिया के सारे ऐसोराम की वस्तुएँ  प्राप्त हो तो आप कौन से दिन का चुनाव करेंगे?लाज़मी है कि आप ऐसोराम वाले दिन का चुनाव करेंगे।

तो आप हीं बताइये कि ऐसा कौन सा जीव होगा जो सुबह से लेकर शाम तक खाने के जुगत में लगा रहे और फिर भी उसे इस बात की गारंटी तक नहीं कि उसके जिह्वा को भोजन का आनन्द प्राप्त होगा हीं होगा और तब जब उसे मान लीजिए भोजन नहीं मिला तो वह आदमी रात को खुशी-खुशी सो जाएगा मच्छरों के गानों के बीच,इस बात को दुहराते हुए कि अरे एक बड़े अमीर ने कहा है कि निर्धन लोग ज्यादा खुश होते हैं ,तो छोड़ो भोजन मिले न मिले खुश रहो!

ऐसी स्थिति के बारे में सोंचने से ही बड़े-बड़े तीसमार खाँ जिन्हें लगता है कि निर्धनता में आदमी खुश रहता है उनकी घिग्गी बंद हो जाएगी।ऐसा हम कह सकते हैं कि पैसा से हीं सारी खुशियां नहीं आ सकती लेकिन ऐसा कहना कि जिसके पास पैसा नहीं है वो खुश रहता है ग़लत है और उतना हीं गलत है जितना दो और दो को जोड़ने के बाद पाँच लिखना।

ऐसा कहना कि निर्धनता में व्यक्ति खुश रहेगा,अपने आप में ही एक छिछला सा व्यंग्य है जो कि किसी गरीब के गरीब हालात और उसके गरीब पेट का मज़ाक उड़ाने के लिए काफ़ी है।ऐसी बाते वही करते है  जो लगभग समय में दूसरों के धन को  लूट ,मुनाफ़ाखोरी, भ्रष्टाचार  और अन्य-अन्य तरीके से अपना बनाने और चुना लगाने के योजना बनाते रहते हैं।

खुद मार्बल-टाइल्स से सुसज्जित और एयर कंडीशन के हवा में नरम व मुलायम गद्दे पर अपनी तसरीफ  टिकाए रखकर ऐसी कथनों को कथना बहुत आसान है,क्योंकि जिस मज़ सर्दी और लहलहाती जेठ की दोपहरी में अपना खाना ढूँढने चीटियाँ भी नहीं निकलती हैं उस सर्दी और गर्मी का परवाह किये बिना एक रिक्शावाला सड़क पर सर्दी में अपने फटे-पुराने चादर में लिपटा या  गर्मी में तौलिए से पसीना पोंछता हुआ रिक्शा हाँकते रहता है तो वह अपनी निर्धनता पर खुशी नहीं मनाता होगा बल्कि अपने आप को कोस रहा होता होगा और सोंचता होगा कि हम भी खदेरन के जगह मुकेश अम्बानी होते!

हम सभी जानते हैं कि गरीबी एक अभिशाप होती है तो आप हीं बताइये न कि कोई अभिशप्त आदमी खुश कैसे हो सकता है?

और जिन्हें लगता है कि निर्धन व्यक्ति एक अमीर व्यक्ति की अपेक्षा ज्यादा खुश रहते हैं,तो किसी दिन एक घण्टे केलिए गरीब,वंचित और शोषित बनकर देख लीजिए और नहीं बन सकते तो अपने दिमाग का वेल्डिंग करवा लीजिये।

पाखंडियों को ऐसे हीं लतियाते और लठियाते रहूँगा।

धन्यवाद,जय हिंद!


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