Pages

Friday, 10 May 2019

प्रेम पत्र भाग-1


फ़ोटो साभार-नदिया के पार

प्रियतमा,फूलगोभी
तुम्हें आलू के बोरी से दु बोरी भर-भर के प्यार!

बाबा भोलानाथ और गाँव के टीले पर वाले बाबा की कृपा से हमारे पॉल्ट्री फार्म में मुर्गा की बिक्री एकदम धका-धक चल रही है और आशा करते हैं कि तुम्हारी भी सब्जी की गुमटी पर खूब भीड़ जमा हो रही होगी।

बहुत हीं हिम्मत जुटा के ई पिरेम पत्र तोहरे नाम से लिख रहे हैं।उम्मीद करते हैं कि रामधनी डाकिया ई पिरेम पत्र लेकर तबही पहुँचे जब तुम दुकान पर शलगम तौल रही हो, नहीं तो अगर ये कहीं तुम्हारे बाबूजी के हाँथ लग गया तब तो हमदोनों गाजर-मुरई जैसे खचर-खचर काट दिए जायेंगे।

आखिरी बार धड़कपुर के मेले में तुमसे मिले थे और उस दिन के बाद से करीब-करीब पौने दु महीना हो गया है  तुमसे मिले।सब भोजन-पानी त्याग के सिर्फ ऑक्सीजन पर जिंदा हैं और तुम्हारी याद में सुख के एकदम भिंडी जैसे हो गए हैं।ज्ञान के छठी इंद्री से हम तुमको धुँधला-धुँधला देख पा रहे हैं और ऐसा लग रहा है कि  तुम भी हमारी याद में सुख के सुखौता हो गई होगी।इतना दिन बाद भी पता नहीं चल रहा है कि अब कब तुम अपने प्यार के गीले-गीले बौछार से हमको एकबार पुनः उसी तरह तर-ओ-ताजा कर दोगी जैसे उस दिन मेले में अपने पसीने से गीले बाल को झटक के कर दी थी।

मेरे मन के खेत में तुम आलू की मेड़ पर सरसो के फूल जैसी विराजमान हो,उस खेत की दरारों से न जाने कितनी हीं बार आवाज आई है कि "अरे!गुलकंद जा मिल आ फूलगोभिया से रे"लेकिन  का करें तुम्हारे बाबूजी को दिया हुआ वह वचन कि "अब तब हीं आएँगे आपके दरवाजे पर जब फूलगोभी को आप हमारे साथ विदा करने को मान जायेंगे" को याद करके अपने पॉल्ट्री फार्म में मुर्गा काटते रह जाते हैं।आखिर काम नहीं करेंगे तो तुम्हारे बापू ने जो टेम्पो मांग किया है तुम्हे मुझसे ब्याहने के बदले उ कहाँ से लायेंगे।यही सब सोंचकर अपने मन के घोड़ा का लगाम ज़ोर से खींच देते हैं।एकदिन तो ऐसी लगाम खिंचे की लगाम टूट के हाँथ में हीं आ गया था,बड़ी मुश्किल से धरे हैं उसदिन अपने मन के घोड़े को।

खैर,रोज रात को सोंचते हैं कि तुमको व्हाट्सएप्प पर मैसेज करें और वीडियो कॉल करें,लेकिन फिर उ दिन जो तुम्हारे पापा तुमको बेल्ट-ए-बेल्ट पिट दिए थे,तुम्हारे मोबाइल में हमारा मैसेज देख के वाला बात याद करके हम बस कीबोर्ड के बटन को हीं टिपटीपाते रह जाते हैं और हमारा जिओ का डेढ़ जीबी डाटा धरा का धरा रह जाता है।तुम्हें तो नहीं देख पा रहे हैं लेकिन पिछले दो महीने से तुम्हारा लास्ट सीन देख-देख के  जी रहे हैं।

पिरेम कौन नहीं करता होगा लेकिन हमारे और तुम्हारे बीच के पिरेम का अनुभव तुम्हारे दुकान पर मिलने वाली करेली से भी ज्यादा कड़वी हो गई है।विरह की कड़वाहट इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि अब मुझे रामपति हलवाई के दुकान की बालूशाही भी कड़वी लगने लगी है।

ये फूलगोभी बढ़िया से रहना और हाँ खाना टाइम से खाते रहना नहीं तो दुबली हो जाओगी और तुम दुबली-पतली होने पर एकदम लाठी जैसी दिखोगी तो अच्छी नहीं लगोगी।तुम्हारे चेहरे का सब रौनक गायब हो जाएगा इसलिए दम भर ठूँस-ठूँस के खाना और खूब फुटबॉल जैसी गोल-मटोल हो जाना।

आशा करता हूँ कि यह पत्र तुम्हें हीं प्राप्त हो और  मोदी जी के अच्छे दिन के आने से पहले हीं हमदोनों का अच्छा दिन आ जाये।

पत्र का जवाब जरूर देना।

अधूरे प्रेम के मार से हताश और तुम्हारे याद में निराश,तुम्हारा प्रेमी

गुलकंद!
गाँव-राईगंज,जिला-कटहलपुर
चुकंदर प्रदेश का निवासी

4 comments:

  1. वाह मारुत जी ....
    बहुत अच्छा लिखे हो हमे भी आशा है कि मोदी जी के अच्छे दिन से पहले इन दोनों के अच्छे दिन आ जाए..

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर और मोहक रचना।

    ReplyDelete