"मजदूर दिवस"
आज मजदूर दिवस है।मजदूर शब्द सुनकर या पढ़कर ही लगता है कि किसी गरीब,दलित, वंचित या शोषित के लिए कहा या लिखा गया होगा।परन्तु ऐसा है नहीं।जिसने भी इस दुनिया में जन्म ले लिया वो किसी न किसी रूप में मजदूरी कर रहा है और वो मजदूर है।
रिक्शाचालक से लेकर हवाई जहाज के चालक तक सभी मेहनत-मजदूरी करते हैं और अपना पेट पालते हैं।चाहे रिलायंस जैसे बड़े दुकान के मालिक अमबानी बंधु हों या गाँव के चौराहे पर पुआल से घेरे हुए गुमटी का मालिक रामपुकार,सभी मेहनत कर रहे हैं,अपने-अपने काम में लगे हुए हैं।
दोनों प्रकार के मजदूरों में ज्यादा कोई भेद है नहीं ,बस भेद के नाम पे इतना हीं भेद है कि जो शासक है उसे अपने किस मजदूर की मजदूरी ज्यादा पसंद आ रही है।वे अपने मजदूरों की मजदूरी देख कर हीं उन्हें उस हिसाब से तवज्जों देते हैं।
अब बात करते हैं यह कि आख़ीर एक मजदूर जब मजदूरी करके अपने घर जाता है तो उसे मिश्री और मलाई मिलता है खाने को और वहीं दूसरी तरफ़ एक मजदूर को खाने केलिए कभी-कभी तो कुछ भी नहीं मिलता है।इसमें दोष किसका है?मजदूर का?उसके मजदूरी का?उससे मजदूरी करवा रहे उनके मालिकों का?इन प्रश्नों का जवाब क्या होना चाहिए इसका उत्तर अभी तक सटीक कोई दे नहीं पाया है।जो इन प्रश्नों का उत्तर देते हैं वो अधिकतर अपने फायदे के अनुसार हीं देते हैं।जिनको जिस प्रकार के मजदूरों के मजदूरी से अधिक फायदा होता है वे उसी मजदूरों के गुण गाते रहतें हैं,जैसे सबसे ज्यादा हमारे वाम मोर्चा वाले ये भूखे पेट रहने वाले गरीबों के मुद्दे उठाते हैं,लेकिन वे सिर्फ मुद्दे हीं उठाते हैं।करने के नाम पर वे सिर्फ और सिर्फ मजदूरों को मूर्ख बनाते हैं,क्योंकि शहरों में आने पर पता चलता है कि वाम पार्टी वाले नेता कितने रईस होते हैं लेकिन मजदूरों को उनके भलाई करने के नाम पर ये उनका खून चूसने के अलावा कुछ नहीं करते।मेरा उनसे सिर्फ इतना हीं कहना है कि अगर आपके पास 10 रुपया आपके उपभोग से ज्यादा हो रहा है तो आप क्यों न उस दस रुपये को उन गरीबों में बांट दे रहे हो जिनके उत्थान केलिए दिन रात हंगामा करते हो।चलिये मानते हैं सरकारें गरीबों केलिए कुछ नहीं करती पर आप स्वहित त्यागकर शुरुआत तो कीजिये।
खैर पता नहीं क्या होगा इस देश के उन मजदूरों का जो मजदूरी के बावजूद भूखे हैं,वंचित है और शोषित हैं,पर ये बात उन मजदूरों से जरूर करना चाहूँगा कि अपने मन को अपने शरीर के जैसा हीं मजबूत किये रहिये,सफलता बिल्कुल हाँथ लगेगी;बशर्ते कि आप उनलोगों से दूर रहें जो आपके दयनीय हालात के तस्वीर खींचते हैं और उससे पैसा कमाते हैं और आपको एक फूटी कौड़ी भी नहीं देते,उनसे आप दूर रहें जो आपके ऊपर कविता पाठ करके कितने हीं महंगे कॉन्सेर्टों से लक्ष्मी बटोर रहे हैं,उनसे बच के रहिएगा जो सिर्फ मीठी बातें करते हैं और चार लॉलीपॉप पकड़ा के आपको गरीब के गरीब हीं रहने देना चाहते हैं,उनसे बच के रहिएगा जो आपकी गरीबी केलिए लड़ेंगे कहके खुद अमीर हो जाते हैं,उनसे बच के रहिएगा जो अपनी मजदूरी को आपके लिए की गई मजदूरी बताते हैं ताकि आपके मजदूरी से प्राप्त मलाई वे अपने दिखावे वाले मजदूरी से काट के खा सकें।
"मजदूरों के उत्थान का कार्य श्रमिक समाज खुद कर लेगा बस हम-आपको मिलकर उन्हें रास्ता दिखाना हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि उनके लिए कार्य करते-करते हम उन्हे धोखा न दें,उनके नाम पर अपनी रोटी न सेंकने लगें"|
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