Pages

Wednesday, 22 May 2019

प्रेम पत्र भाग-३


प्राणनाथ गुलकंद
पिताजी के मार से उत्पन्न दर्द से निकलती हुई आह और आँखों से आँशुओ के रूप में बहती हुई प्रेम को तुमतक प्रेषित कर रही हूँ।स्वीकारना।

बाबा की कृपा से तुम ठीक होगे और आशा करती हूँ कि मेरे भाइयों द्वारा तुम्हारी हुई धुनाई के फलस्वरूप उत्पन्न चोट कम हो गई होगी और तुम फिर से चमक-दमक रहे होगे।

आज जब मेरे पिताजी तुम्हारे पत्र का नाम लेकर अचानक मुझे धड़ा-धड़ पीटने लगे तब पता चला कि तुमने मेरे लिए पिरेम पत्र लिखा था और वो बापू के हाथ लग गया है।का बताये तुमको,पिता जी हमको इतना कूटे हैं कि,गुर्दा,यकृत,हृदय और फेफड़ों का आपस में महागठबंधन हो गया है।देह चूर-चूर हो गया है,लेकिन तुम्हारे पिरेम का जो याद है वही कुछ-कुछ टॉनिक का काम करता है और पुनः देह में फुर्ती सी आ जाती है।

मैं तुम्हें क्या बताऊँ मेरी हालत उस बैगन के तरह हो चुकी है जो ऊपर से तो खूब बढिया दिखता है परन्तु अंदर से कनायल(सडा हुआ) होता है।पिता जी के द्वारा बेल्ट की पिटाई से बना ज़ख्म ठिक हो चुका है लेकिन दिल का घाव मारियाना ट्रेंच से भी ज्यादा गहरा होते चला जा रहा है और अगर तुम अपने प्यार रूपी मिट्टी उस गड्ढे में डालकर नहीं भरोगे तो कहीं एकदिन ऐसा न हो कि हम अपने दिल के घाव से उत्पन्न गड्ढे में गिरकर ही अपने प्राण को त्याग दें।

आपकी याद में दिल में इतना दर्द उठता है और आपसे विरह में इतना तड़पते हैं फिर भी ठीक से रो नहीं पाते हैं।आँशु आँख से निकलता है और पपनी पर हीं झूल के रह जाता है।लोर गाल पर भी नहीं सट पता है और पपनी पर हीं झूलते-झूलते सुख जाता है।

मेरी चाहत तो है कि तुम मेरी चाशनी बनो और मैं तुम्हारे उस प्रेम रूपी गुड़ के बने चाशनी में गर्म-गर्म जलेबी के तरह डूब जाऊँ।लेकिन पिता जी के द्वारा बेल्ट से पड़ी मार ने मेरे हर सपने को तोड़कर उसे चकनाचूर कर दिया है।सपनों के इतने टुकड़े हो चुके हैं कि अगर उसकी गणना करने बैठूँ तो सतो जन्म लग जायेगा।

कभी-कभी मन करता है कि भोरे-भोरे कटलहपुर-बैगनगंज वाली बुलेट ट्रैन पकड़ के तुम्हारे साथ भाग जाएँ लेकिन फिर ख्याल आता है कि हम मोदी जी जैसे फ़क़ीर थोड़े न हैं कि झोला उठाये और चल दिये।परिवार वालों के बारे में भी तो सोचना पड़ता है न!एक बात जान लो गुलकंद हम तुमसे पिरेम करते हैं लेकिन हमको स्वार्थी मत समझना।

तुम्हारे प्यार में घरवालों का ताना सुन-सुन के मेरा हालत इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के जैसा हो गया।अब तो घर में हुई किसी भी प्रकार के सभी गलतियों के लिए मुझे हीं सुनना पड़ता है।सब यही कहते हैं कि फूलगोभिया को बोलो कुछ भी बात सिर्फ गुलकंद वाला ही सुनाई देता है।लगता है इसके दिमाग का चिप गुलकंदवा हैक कर लिया है जैसे।

ई प्रेम पत्र जब तुमको मिल जाएगा तो कृप्या करके जवाब में दुबारा प्रेम पत्र नहीं लिखना।बाबूजी पिरेम पत्र पकड़ के बहुत कूटते हैं।ई दूसरी बार तुम्हारा पिरेम पत्र पकड़ाया है और हम कुटाये हैं।अबकी बार बाबूजी अगर धर लिए तो रोड पर लेटा के ऊपर से जेसीबी पार करवा देंगे।

पिरेम पत्र लिखने से अच्छा है कि मिलने आ जाइयेगा,हम भी सखी-सहेली के बहाना करके आ जाएँगे।अबकी आवे वाला शुक्ल पक्ष पंचमी को मिलने आइयेगा।उसदिन चुनाव के परिणाम की घोषणा है और हमारे बाबूजी और भइया लोग सब उसी में व्यस्त रहेंगे। वही जानकी माता के मंदिर के पीछे जो तालाब है उसके पार जो बूढ़ा बरगद का पेड़ है वहीं पर हम ठीक पौने चार बजे आपका इन्तेजार करेंगे।आशा करती हूँ तुम आओगे वरना याद रखना अगर तुमने तत्परता नहीं दिखाई तो इस बूथ को कोई और लूट के लेकर चला जायेगा और तुम भारतीय राजनीति दल जो विपक्ष में है  उसके जैसा  पेपियाते रह जाओगे।

और हाँ,पिताजी के द्वारा भेजे गए पत्र और उसके शब्दों के लिए माफ़ी मांगती हूँ।

तुम्हारे पिरेम को पाने केलिए अकबकाएल
फूलगोभिया उर्फ सब्जियों की रानी
ग्राम-लाठीपुर, जिला-संग्रामगंज
चुकंदर प्रदेश की निवासी                            【pc-:गूगल】

Monday, 13 May 2019

प्रेम पत्र भाग-२

Photo-Google


बेटा गुलकंद
तुम्हे मेरी ओर से प्याज के बोरी में भर-भर के सवा एक बोरी लानत!

तुम जो पिरेम पत्र फूलगोभिया के लिए लिखे थे उ  मिला हमको,और उसे पढ़ने के बाद हमने उसके उतने हीं टुकड़े किये जितने 1971 के युद्ध में पाकिस्तान के हुए थे।तुम्हारे पिरेम पत्र को देखते हीं मन में एक बात हिला कि तुम्हे जूतों की माला पहनाकर,तुम्हारे जैसे गधे के ऊपर एक गधे को बैठाकर (क्योंकि तुम इतने बड़े गधे हो कि तुम्हें गधा भी अपने ऊपर नहीं बैठाएगा)और तुम्हें लठियाते हुए पूरे कटहल पुर में घुमाएँ।उस पिरेम पत्र में तुमने जिस तरह से अपने पिरेम को बयाँ किया है उसे पढ़कर मेरे आंखों में खून उत्तर आये जिस कारण मुझे खून की कमी हो गई और 3 लीटर खून चढ़ाना पड़ा है।

उस पिरेम पत्र को पढ़ते हीं फूलगोभिया के पाँचों भाइयों को लाठी देकर उन्हें लठैती सिखाने लगा हूँ।जल्द ही वे तुम्हें कूटते हुए पाए जाएँगे।उससे पहले कि वो तुम्हारे पास पहुँचे,तुम उनके पहुँचने से पहले हीं तेल-उल लगा के देह मजबूत कर लो या ऊ आयरन मैनवा जैसन कुछ बॉडी में आयरन फिट करवा लेना नहीं ओ इतना लाठी लगेगा कि हर बार बैठते-उठते फूलगोभिया के जगह उसके पांचों भाइयों को याद करोगे,और हाँ इस बात की सजा सिर्फ तुमको हीं नही मिलेगी, फूलगोभिया का भी  पीठ बेल्ट से बामें-बाम कर दिए हैं।

शादी-ब्याह के ये जो सपना देखे रहे हो तुम उसमें सबसे पहले जाकर अपना जात पता करो और अगर तुमसे पता नहीं हो पायेगा तो बताना हम जात-पात विशेषज्ञ रवीश कुमार को भेज देंगे तुम्हारे घर वो तुम्हारा जात पता कर देंगे।

ये जो तुम हमारी बेटी फूलगोभिया से चुपके-चुपके फिक्सिंग करना चाहते हो तो सुनो, तुम कोई मुंबई इंडियंस हो नहीं कि हमारी बेटी चेन्नई सुपर किंग्स बन के तुमसे फिक्सिंग कर लेगी और  न हीं तुम्हारे बापू अंबानी हैं कि तुम्हारे लिए वो हमारी बेटी को फिक्स कर देंगे।तो जबतक अपना वचन तुम पूरा नहीं करते हो  तबतक याद रखो और हमारी बेटी से उतनी हीं दूरी बनाये रखो जितनी दूरी राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल बनाये हुए थे गठबंधन के मामले पर।वरना ऐसा मुक्का मारेंगे की नाम से गुल अलग गिरेगा और कंद अलग।

अगर तुम्हारा पिरेम सच में सच है तो तुमको हमारी दो तीन बातें माननी पड़ेंगी जो मोदी जी से संबंधित होंगी-
पहला ये कि अजय देवगन को देखकर जो तुम विमल गुटखा खाकर,दाने-दाने में केसर का स्वाद लेते हुए सड़कों और दीवारों पर थूककर केसरिया करते जाते हो।उस आदत को बदलकर तुम्हें साफ-सफाई पर ध्यान देना होगा।
चूँकि हम मोदी के भक्त हैं तो तुम्हें भी अपने नाम के आगे चौकीदार लगाना होगा।

"और हाँ जो वचन के बारे में तुम अपने पिरेम पत्र में कह रहे थे उसे तो पूरा हीं करना होगा,हर हाल में"।

अब तो श्री राहुल गान्धी जी भी कह रहे हैं कि जीतेगा तो प्रेम हीं, लेकिन अगर उपरोक्त बातों को माने बिना अगर अगली बार कोई भी पिरेम पत्र मेरे द्वार तक पहुंचा तो,समझ लो कि तुम मुझे अमरेश पूरी के अवतार में देखोगे। और हाँ मान लो कि ई सनीमा तो है नहीं और तुम हीरो हो नहीं तो याद रखना शरीर पर इतना लाठी बजरेगा(पड़ेगा) कि बिना ओरचल खटिया जैसन ढीले पड़ जाओगे।।


अंत में एकबात याद रखना बेटा कि ई धमकी के बाद अगर तुम्हारा पिरेम पत्र आये या न आये लेकिन केंद्र में "आएगा तो मोदी हीं"।

तुम्हारी प्रेमिका का खतरनाक पिता और तुम्हें पीटने केलिए बेताब...
तरबूजा सिंह
ग्राम-लाठीपुर, जिला-संग्रामगंज
चुकंदर प्रदेश का निवासी

Friday, 10 May 2019

प्रेम पत्र भाग-1


फ़ोटो साभार-नदिया के पार

प्रियतमा,फूलगोभी
तुम्हें आलू के बोरी से दु बोरी भर-भर के प्यार!

बाबा भोलानाथ और गाँव के टीले पर वाले बाबा की कृपा से हमारे पॉल्ट्री फार्म में मुर्गा की बिक्री एकदम धका-धक चल रही है और आशा करते हैं कि तुम्हारी भी सब्जी की गुमटी पर खूब भीड़ जमा हो रही होगी।

बहुत हीं हिम्मत जुटा के ई पिरेम पत्र तोहरे नाम से लिख रहे हैं।उम्मीद करते हैं कि रामधनी डाकिया ई पिरेम पत्र लेकर तबही पहुँचे जब तुम दुकान पर शलगम तौल रही हो, नहीं तो अगर ये कहीं तुम्हारे बाबूजी के हाँथ लग गया तब तो हमदोनों गाजर-मुरई जैसे खचर-खचर काट दिए जायेंगे।

आखिरी बार धड़कपुर के मेले में तुमसे मिले थे और उस दिन के बाद से करीब-करीब पौने दु महीना हो गया है  तुमसे मिले।सब भोजन-पानी त्याग के सिर्फ ऑक्सीजन पर जिंदा हैं और तुम्हारी याद में सुख के एकदम भिंडी जैसे हो गए हैं।ज्ञान के छठी इंद्री से हम तुमको धुँधला-धुँधला देख पा रहे हैं और ऐसा लग रहा है कि  तुम भी हमारी याद में सुख के सुखौता हो गई होगी।इतना दिन बाद भी पता नहीं चल रहा है कि अब कब तुम अपने प्यार के गीले-गीले बौछार से हमको एकबार पुनः उसी तरह तर-ओ-ताजा कर दोगी जैसे उस दिन मेले में अपने पसीने से गीले बाल को झटक के कर दी थी।

मेरे मन के खेत में तुम आलू की मेड़ पर सरसो के फूल जैसी विराजमान हो,उस खेत की दरारों से न जाने कितनी हीं बार आवाज आई है कि "अरे!गुलकंद जा मिल आ फूलगोभिया से रे"लेकिन  का करें तुम्हारे बाबूजी को दिया हुआ वह वचन कि "अब तब हीं आएँगे आपके दरवाजे पर जब फूलगोभी को आप हमारे साथ विदा करने को मान जायेंगे" को याद करके अपने पॉल्ट्री फार्म में मुर्गा काटते रह जाते हैं।आखिर काम नहीं करेंगे तो तुम्हारे बापू ने जो टेम्पो मांग किया है तुम्हे मुझसे ब्याहने के बदले उ कहाँ से लायेंगे।यही सब सोंचकर अपने मन के घोड़ा का लगाम ज़ोर से खींच देते हैं।एकदिन तो ऐसी लगाम खिंचे की लगाम टूट के हाँथ में हीं आ गया था,बड़ी मुश्किल से धरे हैं उसदिन अपने मन के घोड़े को।

खैर,रोज रात को सोंचते हैं कि तुमको व्हाट्सएप्प पर मैसेज करें और वीडियो कॉल करें,लेकिन फिर उ दिन जो तुम्हारे पापा तुमको बेल्ट-ए-बेल्ट पिट दिए थे,तुम्हारे मोबाइल में हमारा मैसेज देख के वाला बात याद करके हम बस कीबोर्ड के बटन को हीं टिपटीपाते रह जाते हैं और हमारा जिओ का डेढ़ जीबी डाटा धरा का धरा रह जाता है।तुम्हें तो नहीं देख पा रहे हैं लेकिन पिछले दो महीने से तुम्हारा लास्ट सीन देख-देख के  जी रहे हैं।

पिरेम कौन नहीं करता होगा लेकिन हमारे और तुम्हारे बीच के पिरेम का अनुभव तुम्हारे दुकान पर मिलने वाली करेली से भी ज्यादा कड़वी हो गई है।विरह की कड़वाहट इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि अब मुझे रामपति हलवाई के दुकान की बालूशाही भी कड़वी लगने लगी है।

ये फूलगोभी बढ़िया से रहना और हाँ खाना टाइम से खाते रहना नहीं तो दुबली हो जाओगी और तुम दुबली-पतली होने पर एकदम लाठी जैसी दिखोगी तो अच्छी नहीं लगोगी।तुम्हारे चेहरे का सब रौनक गायब हो जाएगा इसलिए दम भर ठूँस-ठूँस के खाना और खूब फुटबॉल जैसी गोल-मटोल हो जाना।

आशा करता हूँ कि यह पत्र तुम्हें हीं प्राप्त हो और  मोदी जी के अच्छे दिन के आने से पहले हीं हमदोनों का अच्छा दिन आ जाये।

पत्र का जवाब जरूर देना।

अधूरे प्रेम के मार से हताश और तुम्हारे याद में निराश,तुम्हारा प्रेमी

गुलकंद!
गाँव-राईगंज,जिला-कटहलपुर
चुकंदर प्रदेश का निवासी

Thursday, 9 May 2019

"बकवास"


फ़ोटो-साभार

 "निर्धन मनुष्य एक अमीर मनुष्य की अपेक्षा ज्यादा खुश रहता है"।

उपर्युक्त कथन जो है उसे अगर हम गणित के तराजू पर तौलें तो वहाँ पर यह कथन चार हजार प्रतिशत गलत साबित होगा।यह कथन अपने आप में हीं विरोधाभासी है।खुद से सोचिये कि अगर आपके पास एक दिन के लिए भी खाने-पीने के लिए कुछ न हो और आपको उसके लिए भीख माँगना पड़े और एकदिन आपके पास दुनिया के सारे ऐसोराम की वस्तुएँ  प्राप्त हो तो आप कौन से दिन का चुनाव करेंगे?लाज़मी है कि आप ऐसोराम वाले दिन का चुनाव करेंगे।

तो आप हीं बताइये कि ऐसा कौन सा जीव होगा जो सुबह से लेकर शाम तक खाने के जुगत में लगा रहे और फिर भी उसे इस बात की गारंटी तक नहीं कि उसके जिह्वा को भोजन का आनन्द प्राप्त होगा हीं होगा और तब जब उसे मान लीजिए भोजन नहीं मिला तो वह आदमी रात को खुशी-खुशी सो जाएगा मच्छरों के गानों के बीच,इस बात को दुहराते हुए कि अरे एक बड़े अमीर ने कहा है कि निर्धन लोग ज्यादा खुश होते हैं ,तो छोड़ो भोजन मिले न मिले खुश रहो!

ऐसी स्थिति के बारे में सोंचने से ही बड़े-बड़े तीसमार खाँ जिन्हें लगता है कि निर्धनता में आदमी खुश रहता है उनकी घिग्गी बंद हो जाएगी।ऐसा हम कह सकते हैं कि पैसा से हीं सारी खुशियां नहीं आ सकती लेकिन ऐसा कहना कि जिसके पास पैसा नहीं है वो खुश रहता है ग़लत है और उतना हीं गलत है जितना दो और दो को जोड़ने के बाद पाँच लिखना।

ऐसा कहना कि निर्धनता में व्यक्ति खुश रहेगा,अपने आप में ही एक छिछला सा व्यंग्य है जो कि किसी गरीब के गरीब हालात और उसके गरीब पेट का मज़ाक उड़ाने के लिए काफ़ी है।ऐसी बाते वही करते है  जो लगभग समय में दूसरों के धन को  लूट ,मुनाफ़ाखोरी, भ्रष्टाचार  और अन्य-अन्य तरीके से अपना बनाने और चुना लगाने के योजना बनाते रहते हैं।

खुद मार्बल-टाइल्स से सुसज्जित और एयर कंडीशन के हवा में नरम व मुलायम गद्दे पर अपनी तसरीफ  टिकाए रखकर ऐसी कथनों को कथना बहुत आसान है,क्योंकि जिस मज़ सर्दी और लहलहाती जेठ की दोपहरी में अपना खाना ढूँढने चीटियाँ भी नहीं निकलती हैं उस सर्दी और गर्मी का परवाह किये बिना एक रिक्शावाला सड़क पर सर्दी में अपने फटे-पुराने चादर में लिपटा या  गर्मी में तौलिए से पसीना पोंछता हुआ रिक्शा हाँकते रहता है तो वह अपनी निर्धनता पर खुशी नहीं मनाता होगा बल्कि अपने आप को कोस रहा होता होगा और सोंचता होगा कि हम भी खदेरन के जगह मुकेश अम्बानी होते!

हम सभी जानते हैं कि गरीबी एक अभिशाप होती है तो आप हीं बताइये न कि कोई अभिशप्त आदमी खुश कैसे हो सकता है?

और जिन्हें लगता है कि निर्धन व्यक्ति एक अमीर व्यक्ति की अपेक्षा ज्यादा खुश रहते हैं,तो किसी दिन एक घण्टे केलिए गरीब,वंचित और शोषित बनकर देख लीजिए और नहीं बन सकते तो अपने दिमाग का वेल्डिंग करवा लीजिये।

पाखंडियों को ऐसे हीं लतियाते और लठियाते रहूँगा।

धन्यवाद,जय हिंद!


Friday, 3 May 2019

आएगा तो मोदी हीं पार्ट-1

Pic credit-Google

आएगा तो मोदी हीं पार्ट-1(एक प्रकार का व्यंग्य)

नोट-पार्ट टू के इन्तेजार में न रहें,यह एक जुमला भी हो सकता है।

एक समय की बात है।एक कौआ था,उसका नाम था कलुआ कौआ।एक दिन राजस्थान से उड़ते-उड़ते गुजरात पहुँच गया।वो गुजरात अमिताभ बच्चन के उस डायलॉग को बार-बार सुनकर आया था जिसमें वो कहते हैं कि "कुछ दिन तो गुजारो गुजरात में"।एक दिन इस बात को सुनते-सुनते वो कौआ अकुता गया और अपने लंबे चोंच में अपने अमेरिकन टूरिस्टर का ट्राली टांग के गुजरात कि ओर उड़ान भर लिया।

कमला पसंद को अपने चोंच के एक कोने में दबाकर जब उस कलुवे कौवे ने उड़ान भरी तो वह अपने आगे के पिलाना को सोंच-सोंच कर काफी भावविभोर हो गया।उसे लगा कि भैया गुजरात एक मॉडल स्टेट है कहीं पंद्रह लाख मिलने वाला कांड वहीं से शुरू हुआ हो और अब जब वो गुजरात जा हीं रहा है तो शायद उसे उसके 15 लाख से के भी दर्शन हो जायें।ये सब सोंचकर कौआ अपने आप को मोदी जी का भक्त  घोषित कर चुका था।

कौवा अपने मन में दो-दो क्विंटल के लड्डू फोड़ते हुए जा रहा था तो उसके उड़ान के क्रम में,सूर्य भगवान के ताप का वोल्टेज हाई होने के कारण, उसके अंदर का सारा पानी पसीना बन के  ठीक उसी प्रकार निकल चुका था,जिस प्रकार से सारे भारतीय "भगोड़े" व्यवसायी यहाँ के बैंकों से लोन लेकर और देश छोड़कर देश से निकल चुके हैं ।लगातार पसीना चलने के कारण जब उसे प्यास लगी तब उसने अपने ग्लूकॉन-डी से भरे मिरिंडा की बोतल में झाँका,जिसे वो अपने पंख के पिछले शिरे से लटकाए हुए था।बोतल की ओर देखते हीं उसे यह एहसास हुआ कि का बोतल कई मिल पहले हीं धरती-लोक को प्रस्थान कर चुका है और अबतक तो उस बोतल के अंदर भरा हुआ ग्लूकॉन-डी किसी खेत का ग्लूकोच बढ़ा रहा होगा।इस दृश्य को देखर के उसने अपने भौवें सिकोड़े और चोंच को अपने ललाट तक सटाने का अनायास कोशिस करते हुए उसने अपनी गति सीमा को बढ़ाने केलिये अपना एक्सीलेरेटर को पाँच नंबर गेयर पर कर दिया।

वह ऊपर में उड़ते-उड़ते अपने आप को ऑटो पायलट मोड में डालकर पानी की तलाश में नीचे देखने लगा तो उसे कुछ तरल पदार्थ दिखी नहीं, क्योंकि गुजरात एक ड्राई स्टेट है।पुनः पानी के तलाश में इधर-उधर देखते हुए उसने अपने माथे से होकर चोंच पर पहुँच चुके पसीने को खादी के रुमाल से पोंछकर जैसे हीं रुमाल हटाया तो उसे एक घड़ा दिखाई दिया।घड़े को देखते हीं  उसने अपने आप को ऑटो पायलट मोड से हटाकर घड़े के ऊपर लैंड करने की तैयारी करने लगा।

घड़े के ऊपर लैंड करने के बाद उसे पता चला कि ये घड़ा भी अब ड्राई हो चला है लेकिन इसमें अभी कुछ जल के बून्द शेष हैं और इससे पहले कि पानी खत्म हो जाए उसने अपने दादाओं-परदादाओं के द्वारा अपनाई गई ट्रिक जिसपर सभी कौआ समाज गर्व करता है, उसको अपनाया और आस-पास में कंकड़ ढूंढने लगा।लेकिन उसे पता नहीं था कि गुजरात एक विकसित राज्य है इंडिया जैसे देश से भी ज्यादा विकसित और वहाँ के लोग व्यावसायिक प्रवृति के होते हैं तो वहाँ पर कंकड़-पत्थर भी आसानी से और मुफ़्त में नहीं मिलते।चारो तरफ फुदकने के बाद जब निराशा हीं हाँथ लगी(परन्तु उसके हाँथ होते नहीं हैं फिर भी) उसे निराशा उसके हाँथ हीं लगी, तो उस चालक कलुआ कौवे ने बिना समय व्यतीत करते हुए उसने पास में ही  हो रही चुनावी रैली  से आते जुमलों की आवाज को पककर उस घड़े में जुमले पर जुमले डालने लगा और डालते-डालते जब थक गया फिर भी घड़े का पानी ऊपर नही आया तो उस कौवे ने,भारी झोला जैसे अपने चोंच को लटकाते हुए घड़े के अंदर झाँक'कर अपने मन में बोला "पानी क्यों नहीं आ रहा है?

तभी अंदर से आवाज आई चाहे कुछ भी करलो पानी नहीं आने वाला उपर सिर्फ़.......
     "आएगा तो मोदी हीं"।।

Wednesday, 1 May 2019

एक माँ का एक बेटे को ख़त .....

ये बिटवा,
वहाँ अब कुछ वैसा नहीं है जैसा कि तुम उस जगह को छोड़ आये थे।गलियों में कंक्रीट की परत चढ़ गई है।बारिश के बाद हाँथ-पैर तो गंदे नहीं होते लेकिन मिट्टी की ओ सौंधी सी खुशबू जो नाकों में पहुँच कर पूरे शरीर में गांव को भर देती थी अब ओ नहीं आती।जिन सड़को पर हल्की सी बूंदा-बांदी के बाद खेत जोतने जा रही बैलें फंस जाया करती थी और तू घंटों अपनी स्कूल छोड़कर उसके निकालने की प्रक्रिया देखता रहता था वहाँ पर पिच की सड़कें बन गई हैं और अब जरा सी धूप के बाद  आग फेंकती हैं मानो वो अब धरती माँ नहीं ताड़का बन गई हों।

जिन नदियों के पानी में पूरे गाँव  के बच्चे नहाते  वक्त प्यास लगने पर उसकी पानी को पी लिया करते थे अब उसमें नालियाँ बहती है और लोगों की तो दूर की बात है अब भैंसें भी उनकी पानी को सूँघकर बिना पिये अपना मुख मोड़ लेती हैं।

गर्मियों में जिन आम के बगीचे के पेड़ों पर तू अपनी भूख-प्यास की परवाह किये बिना डोल-पत्ता खेलते रहता था अब उन पेड़ो की कुर्सियां,टेबल और पलंगे बन गईं हैं अब खैर अब वहाँ कोई बगीचा बचा तो नहीं है पर खाली जगह देखकर उग आईं झाड़ियों व झुरमुटों के आड़ में बच्चे बचपने को भुलाकर जुआ-ताड़ी व वैभिचार को अपना रहे हैं।

गाँव में जहाँ पहले भोर होते हीं बच्चे व गौरैया के चहचहाहट की आवाजें आती थी आज सुबह जगने पर बुजुर्गों के कराहने और अस्थमा से खांसने की आवाज आती है।बच्चों को देखे महीनों बीत जाते हैं।और उस  गौरैया को जिसके साथ तू घंटो अपनी स्कूल की बातें किया करता था वो तो न जाने कबसे हमें छोड़ कहीं चली गई है।विकास तो हुआ है लेकिन लगता है इस तथाकथित "विकास" ने डायन बनकर मेरे गाँव को खा गई है।

तुझे तेरी रमनी काकी,मोती चाचा और बाकी सब आज भी याद करते हैं और मानते भी हैं।गाँव खंडहर बने उससे पहले तू कुछ कर,एक काम कर तू गाँव आजा अपने बच्चों को लेकर;तू शुरुआत तो कर शायद फिर से गांव,गाँव जैसा लगने लगे।मुझे नहीं चाहिए एसी, मैं ताड के पंखे से बनी "हाँथ-पंखा" से काम चला लूंगी,तुझे गर्मी लगेगी तो मैं रातभर तेरे सिरहाने बैठ पंखा झलूंगी।तू आजा बेटा, मुझे मेरे गाँव लौटा दे।बस तू आजा इससे पहले की ये गाँव बूढ़ा बनकर खत्म हो जाये,तू आज बेटा!
तुम्हारी
अम्मा

मजदूर दिवस

"मजदूर दिवस"

आज मजदूर दिवस है।मजदूर शब्द सुनकर या पढ़कर ही लगता है कि किसी गरीब,दलित, वंचित या शोषित के लिए कहा या लिखा गया होगा।परन्तु ऐसा है नहीं।जिसने भी इस दुनिया में जन्म ले लिया वो किसी न किसी रूप में मजदूरी कर रहा है और वो मजदूर है।

रिक्शाचालक से लेकर हवाई जहाज के चालक तक सभी मेहनत-मजदूरी करते हैं और अपना पेट पालते हैं।चाहे रिलायंस जैसे बड़े दुकान के मालिक अमबानी बंधु हों या गाँव के चौराहे पर पुआल से घेरे हुए गुमटी का मालिक रामपुकार,सभी मेहनत कर रहे हैं,अपने-अपने काम में लगे हुए हैं।

दोनों प्रकार के मजदूरों में ज्यादा कोई भेद है नहीं ,बस भेद के नाम पे इतना हीं भेद है कि जो शासक है उसे अपने किस मजदूर की मजदूरी ज्यादा पसंद आ रही है।वे अपने मजदूरों की मजदूरी देख कर हीं उन्हें उस हिसाब से तवज्जों देते हैं।

अब बात करते हैं यह कि आख़ीर एक मजदूर जब मजदूरी करके अपने घर जाता है तो उसे मिश्री और मलाई मिलता है खाने को और वहीं दूसरी तरफ़ एक मजदूर को खाने केलिए कभी-कभी तो कुछ भी नहीं मिलता है।इसमें दोष किसका है?मजदूर का?उसके मजदूरी का?उससे मजदूरी करवा रहे उनके मालिकों का?इन प्रश्नों का जवाब क्या होना चाहिए इसका उत्तर अभी तक सटीक कोई दे नहीं पाया है।जो इन प्रश्नों का उत्तर देते हैं वो अधिकतर अपने फायदे के अनुसार हीं देते हैं।जिनको जिस प्रकार के मजदूरों के मजदूरी से अधिक फायदा होता है वे उसी मजदूरों के गुण गाते रहतें हैं,जैसे सबसे ज्यादा हमारे वाम मोर्चा वाले ये भूखे पेट रहने वाले गरीबों के मुद्दे उठाते हैं,लेकिन वे सिर्फ मुद्दे हीं उठाते हैं।करने के नाम पर वे सिर्फ और सिर्फ मजदूरों को मूर्ख बनाते हैं,क्योंकि शहरों में आने पर पता चलता है कि वाम पार्टी वाले नेता कितने रईस होते हैं लेकिन मजदूरों को उनके भलाई करने के नाम पर ये उनका खून चूसने के अलावा कुछ नहीं करते।मेरा उनसे सिर्फ इतना हीं कहना है कि अगर आपके पास 10 रुपया आपके उपभोग से ज्यादा हो रहा है तो आप क्यों न उस दस रुपये को उन गरीबों में बांट दे रहे हो जिनके उत्थान केलिए दिन रात हंगामा करते हो।चलिये मानते हैं सरकारें गरीबों केलिए कुछ नहीं करती पर आप स्वहित त्यागकर शुरुआत तो कीजिये।

खैर पता नहीं क्या होगा इस देश के उन मजदूरों का जो मजदूरी के बावजूद भूखे हैं,वंचित है और शोषित हैं,पर ये बात उन मजदूरों से जरूर करना चाहूँगा कि अपने मन को अपने शरीर के जैसा हीं मजबूत किये रहिये,सफलता बिल्कुल हाँथ लगेगी;बशर्ते कि आप उनलोगों से दूर रहें जो आपके दयनीय हालात के तस्वीर खींचते  हैं और उससे पैसा कमाते हैं और आपको एक फूटी कौड़ी भी नहीं देते,उनसे आप दूर रहें जो आपके ऊपर कविता पाठ करके कितने हीं महंगे कॉन्सेर्टों से लक्ष्मी बटोर रहे हैं,उनसे बच के रहिएगा जो सिर्फ मीठी बातें करते हैं और चार लॉलीपॉप पकड़ा के आपको गरीब के गरीब हीं रहने देना चाहते हैं,उनसे बच के रहिएगा जो आपकी गरीबी केलिए लड़ेंगे कहके खुद अमीर हो जाते हैं,उनसे बच के रहिएगा जो अपनी मजदूरी को आपके लिए की गई मजदूरी बताते हैं ताकि आपके मजदूरी से प्राप्त मलाई वे अपने दिखावे वाले मजदूरी से काट के खा सकें।

"मजदूरों के उत्थान का कार्य श्रमिक समाज खुद कर लेगा बस हम-आपको मिलकर उन्हें रास्ता दिखाना हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि उनके लिए कार्य करते-करते हम उन्हे धोखा न दें,उनके नाम पर अपनी रोटी न सेंकने लगें"|