बिहार |
हाँ, हम उसी बिहार से हैं जहाँ के लोगों के पास दस अंकों के मोबाइल नंबर में सिर्फ जीरो-जीरो होता है।(कोरोना जाँच घोटाला) ऐसा हमने आर्यभट्ट के सम्मान में किया था। वही बिहार से हैं जहाँ पर एक प्रख्यात गणितज्ञ को मरणोपरांत एक एम्बुलेंस तक नहीं मिला सका, वही बिहार से हैं जहाँ की शिक्षा व्यवस्था पंचवर्षीय योजना बन चुकी है। वर्तमान में और ऐसे कई उदाहरण हैं जिसपर हम गर्व से अपने सर को नीचे कर सकते हैं!
हमारे पूर्वजों ने एक बढ़िया ब्रांड का महंगा कपड़ा हमारे लिए छोड़ दिया है। उन्हें परलोक सिधारे वर्षों बीत चुके हैं और अब हमारी खद्दर की धोती भी खरीदने की औकात नहीं बची है! वर्तमान में लोग जब हमारी अकर्मण्यता पर उँगली उठाते हैं तब हम उन्हें बताते हैं कि हमारे पास भी एक पूर्वजों का दिया हुआ बढ़िया सूट है। कोई ऐसे-कैसे हमें निकम्मा कह सकता है!
खैर, आज बिहार दिवस है और आज हम बिहारी अपने गौरवपूर्ण अतीत को याद करके लहालोट होंगे।धतिंगो का नाच करेंगे। आह बिहार से वाह-वाह बिहार करेंगे। अपने आप को आईएस उत्पादक की संज्ञा देते हुए शर्माएँगे और बिहारी होने पर गर्व करेंगे। ऐसा कहना ग़लत नहीं होगा कि हमलोग अपने इतिहास का ही खा रहे हैं और उसको खाते-खाते हम उसकी गुठली तक को खाकर खत्म कर चुके हैं। अब बस कोई देख न ले कि हमारे पास कोई फल खाने को बचा नहीं है तो हम अपने मुँह पर हाथ रखे रहते हैं और आह इतिहास-सु स्वादु इतिहास-गौरवपूर्ण इतिहास का चटकारा लगाते रहते हैं।
और इनसब की आड़ में अपने घनघोर जातिवाद से लेकर खराब राजनीतिक व्यवस्था को स्थान विशेष में रख लेते हैं और वर्तमान में क्या हो? कैसे हो? सोचना छोड़कर अपने पिछड़ेपन के कारकों को नजरअंदाज करके अपने मन को अशोक और बुद्ध के काल में विचरण करवाते हुए रात को रोज रात को सो जाते हैं।अपने इतिहास पर गर्व करना गलत बात नहीं है परंतु, हमें अपने वर्तमान को भी देखना बेहद जरूरी है क्योंकि जब हम इतिहास बने तो आने वाला भविष्य भी हमारा नाम उसी सम्मान और ओज से ले जैसे हम अपने पुर्वजों को याद करके फुले नहीं समाते हैं।
फिर कल से वही... 'वोट अपने जाति के पड़े के चाही' वाली मानसिकता से दिन आरम्भ कर लेते हैं।हम बिहार वासी को अपने गौरवशाली इतिहास के चिरकालिक सन्नाटे में आत्ममुग्ध होकर विहार करने का लत लग गया है। ये लत दारू से भी अधिक हानिकारक है, जिसपर कोई भी सुशासन बैन नहीं लगा सकता है, क्योंकि यह हम सब के अंदर में ही उत्पादित हो रहा है। इतिहास पर मुग्ध होने की फैक्टरी से निकले वाला धुआँ हमें हमारे वर्तमान को देखने नहीं दे रहा है। यह धुआँ मंजिल के रास्ते में पसर गया है भ्रष्टाचार की तरह। भ्रष्टाचार आलसी होता है। यह एकबार जहाँ बैठ गया उठता नहीं है, पसर जाता है और धीरे-धीरे अपनी टांगे फैलाता जाता है। कोरोना है यह। एक बार फैला तो फिर ये किसी भी मास्क और सेनिटाइजर से शांत नहीं होगा।खैर, हमारी आँखों की पुतलियों पर चाणक्य और आर्यभट्ट की कृतियों और विद्वता ने इस तरह से पर्दा लगा दिया है कि हमें यह दिखाई नहीं देता कि एक सड़ी हुई बीमारी हमारे यहाँ सैंकड़ों बच्चों को खा जाती है। बाढ़ से बचाने वाले बांध को चूहे खा जा रहे हैं। बाढ़ प्रत्येक साल लोगों का भविष्य बहा ले जा रहा है और उसी बाढ़ के पानी में नेताओं का ज़मीर प्रत्येक साल थोड़ा थोड़ा डूबते-डूबते अब लगभग समाप्त हो चुका है।
वर्तमान में हम अपनी जाति से आने वाले नेताओं के द्वारा किये गए भ्रष्टाचार और बलात्कार तक को समर्थन देते हुए अपनी मूँछों को गर्व से ऊपर उठाते हैं। हमारे भीतर अज्ञानता और रूढ़ सोंच इस प्रकार चौकड़ी मार के बैठ गया है कि हमारे घर में भोजन हो न हो इसपे सोचने तक नहीं देता वहीं हमारे नेता हमें ही लूट के अपने घर भर रहे हैं और हम उनके लिए जान तक देने को तैयार हैं।अपने इतिहास पर गर्व करना गलत बात नहीं है परंतु, हमें अपने वर्तमान को भी देखना बेहद जरूरी है क्योंकि जब हम इतिहास बने तो आने वाला भविष्य भी हमारा नाम उसी सम्मान और ओज से ले जैसे हम अपने पुर्वजों को याद करके फुले नहीं समाते हैं।
खैर, इसमें कोई दो-मत नहीं है कि हमारा अतीत गौरवपूर्ण रहा है किंतु उसी को ढोना और उसी के नाम पर अपना नाम बनाना तो ठीक उसी प्रकार हुआ कि- स्वयं वर्तमान में हमने एक दुभ भी न उखाड़ी हो लेकिन, अपने अकूत बपौती सम्पत्ति को दिखा-दिखा के अपनी अकर्मण्यता को छिपा रहे हैं।यह एक प्रकार का भ्रष्टाचार है जो हमारे भीतर और हमारे वर्तमान में फैला हुआ है।इतिहास के सब्ज़बाग दिखाने का भ्रष्टाचार। इतिहास को इतना दिखाया गया है कि वह अब घिस चुका है।रहम करें उसपर।
ऐसा नहीं है कि वर्तमान में बिहार में सिर्फ कमियाँ ही हैं, बस फिलहाल यहाँ बढ़िया कुछ हो नहीं रहा है और स्वयं से होगा भी नहीं।हमें ही कुछ करना होगा। जिसे जो काम मिला है उसे उसके काम को ईमानदारी से करना होगा। तभी कुछ हो पायेगा।
थोड़ी हिम्मत जुटाकर कुछ 'बढ़िया' होने के लिए तैयार भी होता है तो यहाँ का सिस्टम उसका पैंट पीछे से खींचकर खोल देता है। 'बढ़िया' बेचारा शरमा के भाग जाता है। कहें तो बिहार के कौरवों की सभा में बेचारे 'बढिया' का चीरहरण हो रहा है और फिलहाल कोई 'कन्हैया' उसे बचाने आएँगे, ऐसा लगता नहीं है।
फिर भी, "जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी" वाक्य के अनुसार बिहार से प्रेम तो है ही। लेकिन, इस जन्मभूमि को इसके गौरवपूर्ण इतिहास के जैसा बनाने के लिए मैदान में उतरना होगा, अपने ऐतिहासिक तथ्यों से प्रेरणा लेकर। न कि, इसका ढोल बना के पीटने से।ऐसे एकदिन ढोल फट जाएगा!
👏👏
ReplyDeleteनिःशब्द हूँ भाई!!
ReplyDeleteआपकी ओजस्वी लेखनी तथा व्यंग्यपूर्ण कलम की स्याही से पुते हुए हर एक शब्द को पढ़कर मन अभिभूत हो गया।
बहुत बढ़िया गुरु! इतिहास से वर्तमान का पालन पोषण करना हमारा आदत नही, हमारा पेशा हो गया है! और इस पहलू को बहुत अच्छे से लिखा है तुमने! शुभकामनाएं?
ReplyDelete💯
ReplyDeleteकाफी सुंदर एवं यथार्थ चरित्र चित्रण किया है बिहार का आपने 🙌।
ReplyDeleteकुछ कहा जाए इसके लिए शब्द नहीं छोड़े आपने👌👌👌
ReplyDeleteवाह! बहुत सुंदर। आत्म श्लाघा को ठेंगा दिखाता यह लेख बहुत गहराई तक जाकर तथ्यों को हिंडोलता है और एक ज़मीर वाले बिहारी को बहुत कुछ सोचने पर बाध्य कर देता है। यूँ ही लेखनी चलती रहे।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया मारुत!जिस तरह से आप बिहार के यथार्थ को उकेरे हो,उसकी जितनी तारीफ़ की जाए वो कम ही है। वर्तमान में कुछ नया बनाने की स्थिति में ही नहीं बचे हैं हमलोग,केवल और केवल इतिहास के नशे में हैं।
ReplyDeleteआपके व्यंगपूर्ण लेखनी में व्यंग्यकार नरेंद्र कोहली जी की झलक मिलती है....लिखना ज़ारी रखें आप
Brilliant marut
ReplyDeleteजितना कहा जाए उतना कम
It is so appreciated!" You always have good humor in yout blogs .👏👏👏
ReplyDeleteअद्भुत लेखन👏👏
ReplyDeleteWaaah👏🏻👏🏻 bilkul sahi👍🏻
ReplyDeleteWah 🙏🏽
ReplyDeleteIt's really speechless
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