आदरणीया हिंदी मइया
आपकी जितनी ख्याति है उतना प्रणाम!
आशा करता हूँ आप सुखी होंगी।फरेब और झूठ से भरे दलदल में भी आप अपनी पौराणिक नींव पर अडिग खड़ी होंगी।
आप तो प्रत्येक पल हमारे साथ हैं।आपके बिना हमारा काम नहीं हो सकता लेकिन फिर भी आज ही वह शुभदिवस है जिस दिन हिंदी के ध्वज्वाहकों ने आपका जन्मदिवस मनाना तय किया था।आज मुँह में हाथ डाल-डाल के हिंदी को कोसने वाले लोगों के द्वारा हिंदी के गुण का बखान किया जाता है।कोई अंग्रेजी में हिंदी दिवस की शुभकामना देता है तो कोई अंग्रेजी को देवनागरी लिपि में लिखकर।
आपके तथाकथित जन्मदिवस पर सुबह से ही ट्विटर से लेकर तमाम तरह के समाचार प्रसारित करने वाले माध्यमों से आपको शुभकामनाएँ दी जा रही हैं।चपरासी से लेकर प्रधानमंत्री तक आपके गुण गाते थक नहीं रहे।एक ने तो यहाँ तक कह दिया कि आने वाला भविष्य हिंदी का है!हिंदी भाषा का भविष्य हो सकता है लेकिन जो ये कह रहे थे वे एकदम मुखौटा लगाकर घूमने वाले लोग हैं। ये आपके नाम पर जनता को ठगते हैं और मैं ये कहूँ तो ग़लत नहीं होगा कि ये हैप्पी हिंदी दिवस बोलने वाले डाकू हैं।
बचपन में दिवसों का ज्ञात इसलिए हुआ था क्योंकि अक्सर उस दिन छुट्टी का लाभ मिलता था।लेकिन धीरे-धीरे यह पता चला और विद्वतजनों को कहते हुए सुना कि दिवस उनका ही मनाया जाता है जो इस समाज में प्रताड़ित हैं, किन्तु आप प्रताड़ित नहीं हैं।आपके जो पुत्र अच्छे और ऊँचे पद पर विराजमान हैं वे आपको प्रताड़ित दिखा-दिखा कर पैसे बनाना चाहते हैं और आपके भोले-भाले पुत्रों को ठगते हैं व आपस में लड़वाते हैं।
मैं आपको एक बात बताना चाहता हूँ।यह हिंदी का गूगल ट्रांसलेट काल चल रहा है और यह बात उस दिन पक्की हो गई थी जब मैं दिल्ली विश्विद्यालय में हिंदी भाषा में पत्रकारिता करने के लिए नामांकन लिया था और हमें हमारे समकक्ष अंग्रेजी माध्यम वालों के पाठ्यक्रम को गूगल ट्रांसलेट करके दे दिया गया था, यथा सोशल आर्डर शीर्षक को सामाजिक आदेश में बदल कर पढ़ाया जाने लगा!किन्तु, हिंदी पर गर्व और बढ़ा जब एक शिक्षक ने उसे ग़लत बताने की बजाय उसे ही पढ़ाना प्रारम्भ कर दिया! उस दिन लगा हिंदी का नवयुग आ गया है! हिंदी का नया तारणहार आ गया है!आज आदरणीय भारतेंदु की आत्मा कितनी खुश होगी!
आपको खतरा आपके उन्हीं ऊँच पदासीन पुत्रों से है जो आपके सेवकों को हिंदी भाषा का प्रयोग करने और इस भाषा में पढ़ाई करने के लिए आगे बढ़ाते हैं और पुनः यही लोग ऊँच शिक्षा में और अच्छे पदों पर नौकरी करने के लिए अंग्रेजी भाषा का ज्ञान होना अतिआवश्यक बताते हैं।
मैं आपसे ये शिकायत इसलिए नहीं कर रहा हूँ कि मैं अंग्रेजी से या अन्य भाषाओं से नफरत करता हूँ।मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि आपको मैं बताना चाहता हूँ कि आपके ये पुत्र आपके ही डाल पर बैठकर आपके ही डाल को काटते हैं।ये भिन्न-भिन्न भाषा वालों को आपस में झगड़ा करवाते हैं ताकि इनकी ग़लती और इनका दोहरा चरित्र छुपा रहे।
हिंदी जैसे हमारी मातृ भाषा हैं वैसे ही सबकी अपनी अपनी होंगी।सबको अपने माताओं से प्यार होता है।क्या जबरदस्ती किसी के दूसरी माता को अपनी माता मनवाना ज्यादती नहीं है?ऐसे ही कई षड्यंत्र और ज्यादती आपके ये ऊँच पदासीन पुत्र करते हैं।
प्रत्येक वस्तु में बदलाव आता है।आपके भीतर भी आ रहा है।आपके अभिनव सेवक आपके ऊपर से नए-नए जिल्द चढ़ा रहे हैं।जरूरत है तो बस इस बात की कि आपके बड़े पुत्र आपके अंदर आती उस बदलवा पर नज़र रखें और उसे सही दिशा दें, न कि वे बदलाव को ही पूर्णतया ग़लत साबित करने पर तुले रहें।इससे ऐसा होगा कि आपके ही अपने घर में फुट पड़ेगा। अगर आपके अपने घर में ही मतभेद रहेगा तो फिर भाषा को बचाने का कौन सोचेगा!
जो प्रत्येक वर्ष वार्षिक क्रिया के रूप में आपको याद करते हैं वे वही हैं जो आपको कबका वृद्धाश्रम में भेज चुके हैं।उन्हें चाहिए कि वे आपको रोज याद करें और जो आपको रोज याद करते हैं जिनका आपके बिना एक सेकंड काम नहीं चलता उन्हें कोसना बन्द कर दें।मिलकर लड़े, किसी दूसरे भाषा या भाषा बोलने वाले से नहीं बल्कि आपको अपने कलेवर बदलने के रास्ते में जो अड़चने पैदा हो रही हैं उससे तथा जो आपकी जड़े काटने पर तुला हुआ है उससे।
आशा करता हूँ आप किसी न किसी माध्यम से अपने बड़े और वैभवशाली पुत्रों को सूचित करेंगी जो आपको बचाने के नाम पर सिर्फ उत्सव मनाते हैं और नाश्ता के प्लेट में मिला एक समोसा और दो छोटा-छोटा कालाजामुन को तीन फांक वाला काँटा के चमच से तोड़-तोड़ के खाते हैं और डकार लेकर आपको उसी में उड़ा देते हैं।
जो आपके लिए कुछ करने हेतु ही विभागों में पदासीन हैं उन्हें चाहिए कि वे आपके स्तम्भों को मजबूत करें।जिनकी आप मातृ भाषा हैं उनका ख्याल रखें और कम से कम ऐसी स्थिति प्रदान करें समाज में कि न तो हिंदी के ऊपर कोई दूसरी भाषा को थोपे और न ही दूसरी भाषा पर हिंदी को थोपा जाए।अंग्रेजी आती है तभी आप इलीट हैं या नौकरी कर सकने में सक्षम हैं वाली मानसिकता सिर्फ हिंदी को ही नहीं बल्कि अन्य भारतीय भाषाओं के लिए भी हानिकारक हैं।
अगर ऐसा ही है कि अंग्रेजी जानने पर ही लोगों को एक रास्ता मिलेगा तब साफ साफ आपके बड़े पुत्रों को चाहिए कि वे सबको अंग्रेजी सीखाने की व्यवस्था कर दें और हिंदी को बचाना है बचाना है के भ्रम में लोगों को डालकर न रखें।आपके बड़े पुत्रों का यही आदत है कि अंग्रेजी के खिलाफ मुहिम छिड़वाते हैं और उसके पीछे अपना स्वार्थ-सिद्धि करते हैं।
आपका ग़लत हिंदी लिखने वाला पुत्र
क ख ग घ ङ
मित्र शाम 6.40 पे पढ़ना शुरू किया और फिलहाल कमेंट लिखते वक़्त 6.49हो चूका है यानि लेख कम से कम उबासियत से लबरेज नहीं था भाषा में चुट्किलापन है ठीक उतना जितना आटे में नमक ज़रूरी होता है
ReplyDeleteमाँ हिन्दी की अस्मिता के ठेकेदारों से विशेष अनुरोध भाई साहब हिंदुस्तान के मूल सार विविधता में एकता में काहे छेद करने पर तूले है क्यों नहीं हिंदुस्तान में बोले जाने वाली ज़बानो की निर्दलीय पहचान(independent identity) को स्वीकार कर लेते है अभी आप one nation one language, one nation one flage की झंडाबरदारी कर रहे है क्या पता कल आप कहना शुरू कर दे one nation, one religion और one nation, one festival क्या ये सब संभव है?
धन्यवाद भाई।
Deleteभारत जिस प्रकार से विविधताओं से परिपूर्ण राष्ट्र है, उसमें किसी भी प्रकार से हम "एकवचन" नहीं हो सकते।
अद्धभुत,अतुलनीय मारुति भाई
ReplyDeleteधन्यवाद भइया
DeleteBahute sundar bhai
ReplyDeleteसुंदर शुक्रिया भाई
Deleteवाह! सार्थक व्यंग्य! आगे भी लिखते रहें। ब्लॉग में 'अनुसरण करें/फॉलो' का विकल्प दें, ताकि आपका अनुसरण किया जा सके। आपके इस नए ब्लॉग (चिठ्ठामंच) की बधाई। यूँ ही लिखते रहें।
ReplyDeleteधन्यवाद फूफा जी।आशीर्वाद आपका बना रहे बस।🙏
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