चंदर बड़ी तेजी से दौड़ता हुआ कोतवाली थाने की ओर जा रहा था तभी सहसा पिछे से आवाज आई-“अरे ओ चन्दर किधर दौड़े जा रहा है राजधानी जैसा बेधड़क” चंदर चलते हुए पिछे मुड़कर देखा तो गाजीपुर वाली चाची झोला लिये खड़ी थी;जो देखने में तो बलवान और कठोर लगती थी पर थीं मन की बड़ी भोली और दिल की मुलायम।
वहीं चंदर के पड़ोसी शर्मा जी के मकान में किराये पर रहती थी,उनके पति श्री श्यामलाल महतो अरब में एक तेल के कुएँ में मैनेजर थे और सांल में सिर्फ दीवाली पर ही आते थे।उनका बेटा सूरज और चन्दर दोनों का जन्म एक ही साथ हुआ था लेकिन 2 साल के उम्र में हीं सूरज को हैपेटाइटिस हो जाने के कारण वह दुनिया से कूच कर गया। दम्पत्ति पर मानो दुःख का सुनामी आ गया औऱ तब से वे दोनों चन्द्र में हीं अपने सूरज को देखते हैं और उस कारण से चन्दर उनका अज़ीज हो गया है। गाज़ीपुर वाली तो उसे अपना सारा सम्पति भी देने की बात करती हैं पर श्यामलाल हीं चुप लगा देता है ,लेकिन जब भी वह अरब से आते हैं चंदर का बोल बाला हो जाता ,उसके लिए ढेर सारे खिलौने और न जाने क्या-क्या ले आते हैं।
गाज़ीपुर वाली ने चंदर की ओर बढ़ते हुए उससे पूछा-” अरे ओ चनर कहाँ बदहवास भागे जा रहा है”।
‘चाची ,माँ और बाउजी कोतवाली गये हैं,थाने से तिवारी चाचा का फोन आया था।उनसे बात करने के बाद बाउजी ने माँ से कहा-“छोड़ेंगे नहीं!उस ब्रिजनारायन और उसके बेटे को,20वर्षा करवायेंगे, जल्दी कोतवाली चलो,तिवारी का फोन आया है,थाने बुला रहा है” और वे दोनों दौड़ पड़े ,मुझेसे बिना कुछ कहे ।
चांदनी;चन्दर की बड़ी बहन,जो कि उससे 14 साल बड़ी थी और चन्दर को अपने प्राणों से भी ज्यादा प्रेम करती थी। रूप,गुण और संस्कार तीनों उसमें प्रचुर मात्रा में भरे पड़े थे।संस्कार और शालीनता ऐसी की साक्षात सीता मैया लगती थी।गुण उसके ऐसे प्रभावी थे कि अगर किसी झोपड़ी वाले घर की भी बहु बने तो उसे राजमहलों जैसा बना दे।
अभी कुछ 1-2 साल पहले हीं चन्दर के बाउजी सुदर्शन बाबू ने बड़ी धूम-धाम से उसका ब्याह चंदौली के ब्रिजनारायन सिंह के बेटे कैलाश सिंह के साथ सम्पन्न करवाया था ।एक रति भी कोई कसर न छोड़ी थी उसके दान-दहेज में, हाँथ खोलकर सर्वश्व लुटा दिया था,चन्दर की माँ नाराज भी होती थी पर ओ कहते ‘एकही तो बेटी है,उसका भी तो बराबर का हक है’ इतना कहते-कहते उनके आँखों में पुत्री प्रेम छलक उठता था,परन्तु निर्मम और लोभी उसके ससुराल वाले उसके साथ में बहुत हीं नीच व्यवहार करते थे और आये दिन पैसों के लिए उसे और सुदर्शन बाबू को जलील करते रहते थे।
‘गाज़ीपुर वाली ने आशंकित होते हुए चन्दर से पूछा-तो तू क्यों जा रहा है?
चन्दर ने हाँफते हुए जवाब दिया-
‘ओ मुझे बिना कुछ कहे अचानक रोते हुए चले गये और शाम हो चुकी है पर दोपहर में गई-गई बिजली ज अभी तक नही आई है सो चारो ओर अंधेरा है जीस कारण मुझे घर में अकेले डर लगने लगा तो मैं भी जा रहा हूँ” इतना कहते-कहते चन्दर की आँखे डबडबा जाती हैं।
चन्दर ने हाँफते हुए जवाब दिया-
‘ओ मुझे बिना कुछ कहे अचानक रोते हुए चले गये और शाम हो चुकी है पर दोपहर में गई-गई बिजली ज अभी तक नही आई है सो चारो ओर अंधेरा है जीस कारण मुझे घर में अकेले डर लगने लगा तो मैं भी जा रहा हूँ” इतना कहते-कहते चन्दर की आँखे डबडबा जाती हैं।
‘तू अब रुक दौड़ मत,मैं भी चलती हूँ तेरे साथ’ अपने आँचल से चनर का पसीना पोछते हुये और प्रेम की चासनी में डूबे ममता भरी दुलार की दृष्टि चन्दर पर फेरते हुए गजीपपुर वाली चन्दर से बोली।
पता नहीं क्यों गाज़ीपुर वाली को कुछ अनहोनी की आशंका हो रही थी।उनके हृदय में ऐसा लग रहा था जैसे अचानक से दुखों और वेदनाओं का भूचाल सा आ गया हो और अपने पूरे बल से उनके हृदय को चीर कर बाहर निकल जाना चाहता हो।
गाजीपुर वाली सरपट तेज कदमों से चन्दर को लिए कोतवाली की ओर बढ़ रही थी और मन ही मन सोच रही थी कि-जब चन्दर के लिए सेवई लेकर उसके घर गई थी तो कल ही तो टेलीफोन से बात हुई है चांदनी से,अब आज ऐसा अनर्थ क्या हो गया जो बात पुलिस तक पहुँच गई।गाजीपुर वाली को उसके पति पर शक हुआ; देखने मे तो कैलाश भद्र लगता था पर जल्लाद की तरह चांदनी को पिटता था और चांदनी को अपने मायके से 10 लाख रुपये मांगने को कहता क्योंकि उसे एक शराब का ठेका खोलना था बनारस में,पर चांदनी अपने पिता की हालत जानती थी,उसे पता था कि उसके पिता के पास 10 लाख तो क्या 10 हजार नही होंगे,”सारे रुपये तो उसकी शादी में खर्च हो गए पूरे 5 लाख गिनवाए थे उसके ससुर ने और उपरौटा खर्च अलग,ओ सम्पति के नाम पर सिविल लाइन्स में 1 कट्ठा जमीन थी ,कितने सपने सजाए थे उसके पिता ने घर बनाने के लिए कि बनारस में अपना घर होगा पर इस दाढ़ीजार ने उसको भी अपने नाम रजिस्ट्री करवा लिया शादी में, वरना बारात लिए लौट रहा था, और अब फिर आये दिन पैसे के लिए प्रताड़ित करता है “इन सब बातों को गाजीपुर वाली से बताते हुए चांदनी की आँखों में आशुओं का सैलाब उमड़ पडा ,गाला रुन्ध हो गया और आँखों से मोतियों की धारा फुट पड़ी।
और इधर जबसे चांदनी माँ बनी है और घर मे बेटी ने जन्म लिया है,जिसका नाम चन्दर ने बड़े प्यार से लक्ष्मी रखा है,तबसे उन जल्लादों ने उसे कष्ट देने में कोई कसर नही छोड़ी है रोज पिटते कभी चिमटे से मुँह जला देते तो कभी शरीर पर गर्म पानी फेंक देते।
दरोगा तिवारी और सुदर्शन बाबू दोनों सहपाठी थे,तिवारी जी लम्बे-चौड़े छः फुटिया जवान हो गए थे दसवीं में ही और उसी समय यूपी पुलिस में दरोगा की बहाली निकली हुई थी तो वे बन गए दरोगा और बेचारे चन्दर के बाउजी पहुँच गए कमिसनर ऑफीस में क्लर्क बन कर।दोनों परम् मित्र होने के कारण तिवारी जी चन्दर और चांदनी को बड़े अच्छे से जानते थेऔर अभी उनकी पोस्टिंग बनारस में ही कुछ पहले हो गई थी।
इधर रोते-पीटते जब सुदर्शन बाबू और चन्द्र की माँ थाने पहुँचे तो तिवारी जी ने दोनों को ढांढस दिलाते हुए एक बगल मेज पर बैठा दिया और लगे बताने कि-आज जब मैं कुछ कार्यलय के काम से चंदौली से लौट रहा था तो जैसे ही बबूलों वाले जंगल के पास पहुँचा तो देखा कि चरवाहों का झुंड खड़ा है और भयाक्रांत स्वर में शोर मचाये हुए है।मैंने भीड़ देखर गाड़ी रुकवाई तो देखा कि आग में बुरी तरह से झुलसा हुआ एक युवती का शरीर पड़ा हुआ है,जब उसकी नब्ज़ टटोलने के लिए हाँथ उठाया तो अचानक से उसपे गुदवाए नाम पर मेरी नजर पड़ी, जिसपर लिखा था “चन्दर”;उसे देख मुझे पहचानते देर न लगी कि यह चांदनी ही है, देखा तो सांस चल रही थी,यथा सीघ्र उसे सुंदरलाल अस्पताल में भर्ती कराया पर…पर..”-तिवारी जी गला भर्रा गया और आँखों से भावनाओं की अविरल धारा फुट पड़ी।
तिवारी जी ने हाँथ जोड़ते हुए,काँपते स्वर में और भर्राये गले से कहा-“मुझे माफ़ करना सुदर्शन, मैं अपनी चांदनी बिटिया को बचा न सका”।
तिवारी जी ने हाँथ जोड़ते हुए,काँपते स्वर में और भर्राये गले से कहा-“मुझे माफ़ करना सुदर्शन, मैं अपनी चांदनी बिटिया को बचा न सका”।
चन्दर के माता-पिता को ऐसा लग रहा था कि मानो वे एक घुप अंधकारमय सुरंग में एक छोटी सी ,प्यारी सी गुड़िया,वही हँसती-खिलखिलाती चांदनी जो अपने नन्हे पाँव के पायल की झंकार से उस अंधकार की चिरमयी शांति को भंग किये हुए दौड़े चली जा रही हो और ये दोनों पति-पत्नी उसके पीछे-पीछे भागे जा रहे हैं,ताकि कहीं वो गिर न जाये,उसे कही चोट न आ जाये,कही उनकी ये गुड़िया उनसे दूर न चली जाए!!
थाने में चिरस्थाई सन्नाटा कायम था कि तबतक गाजीपुर वाली चन्दर को लिए थाने पहुँच गई,उन्हें देखते ही चन्दर की माँ उनसे लिपट गई,और गाजीपुर वाली के लाख पूछने पर भी कुछ न बोलती बस रोये जा रही थी….
थाने में चिरस्थाई सन्नाटा कायम था कि तबतक गाजीपुर वाली चन्दर को लिए थाने पहुँच गई,उन्हें देखते ही चन्दर की माँ उनसे लिपट गई,और गाजीपुर वाली के लाख पूछने पर भी कुछ न बोलती बस रोये जा रही थी….
“आखिर इस “डायन दहेज” ने मेरी चंदनिया को निगल ही लिया!!अब लक्ष्मीया का क्या होगा!!….इतना कहते हुए चन्दर की माँ वहीं थाने में पछाड़ खाकर गीर पड़ी।
~मारुत नन्दन शरण
दिनांक-:30 सितंबर 2018
दिनांक-:30 सितंबर 2018
काश! हर इंसान की सोच आपके जैसी होती।
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