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Thursday, 16 January 2020

प्रेम पत्र भाग-४



आदरणीय गुलकंद
इस ख़त के माध्यम से अपनी डूबती प्यार रूपी अर्थ व्यवस्था को बचाने के लिए अपने दिल रूपी रिज़र्व बैंक से निकालकर आपातकालीन परिस्थितियों में प्रयोग होने वाले धन रूपी प्यार को प्रेषित कर रही हूँ।

हम तो तुम्हारी याद में सुख के भिंडी जइसन दुबरा गए हैं लेकिन बधार वाले बरहम बाबा से इहे मनीता मांगते रहते हैं कि तुम जहाँ भी रहो तन्दरुस्त रहो और तरबूजा अइसन मोटा जाओ।आशा करते हैं जहाँ भी। होगे लहरिया लूट रहे होगे।

पिछली दफा जब तुमको हम पिरेम पत्र लिखे थे तो बाबूजी के डर के कारण हम तुमको पिरेम पत्र लिखकर हम अपने पास भेजने से मना किये थे, किन्तु मिलते रहने के लिये तो बोले थे न?लेकिन तुम इतने दिन से ऐसे गायब हो जैसे आम आदमी की थाली से प्याज गायब हो गया है, अर्थव्यवस्था का व्यवस्था गायब हो गया है, ऋषभ पंत के बल्लेबाजी का फॉर्म गायब हो गया है।मुझे तो डर है कि कहीं आप स्वामी नित्यानंद के द्वारा निर्मित उनके निजी देश कैलाशा में तो नहीं जाकर बस गए या कहीं कोई बैंक में धन का फ्रॉड करके देश छोड़कर तो नहीं भाग गए?लेकिन मुझे पता है कि आपका कोई जान-पहचान का सरकारी तंत्र में नहीं है तो अगर आप कोई इस तरह का फ्रॉड करते भी हैं तो न तो आप देश छोड़कर भाग सकते हैं और न हीं कोई नए देश के निर्माण का फॉर्म ही संयुक्त राष्ट्र में डाल सकते हैं।

तुम्ही कहते थे कि हर पंद्रह दिनों पर खत लिखता रहूँगा।चाहे चांद पर विक्रम लैंडर जैसा लापता ही क्यों न हो जाऊं तुम्हे मेरा पत्र रूपी सिग्नल मिलता रहेगा।लेकिन तुम जिस तरीके से हम से मुँह फेर लिए हो  उससे तो यही लगता है कि तुमने हमारे प्यार के पवित्र संविधान को ठीक उसी प्रकार तोड़ दिया है जैसे आदरणीय पंत प्रधान हमारे देश के संविधान के साथ कर रहे हैं।

तुम्हें तो पता है कि इस जालिम जमाने में औरतें कितनी आज़ादी से रहती हैं।फिर भी,तुम्हें यह पत्र लिख रही हूँ और बगल के खेत वाले गाजर एक भाई गाजर सिंह ब्रो के द्वारा भिजवा भी रही हूँ और अगर अभी भी तुम हमारे प्रेम में हो और हमको अपनी फगुनिया मानते हो तो तुमको हमर किरिया है कि तुम अगले सोमवार को  CAA के खिलाफ़ प्रोटेस्ट में आना वही पर अपने संविधान के लिए लड़ते हुए हम मिल भी लेंगे।

तुमने हमारे जीवन में अच्छे दिन लाने का वायदा किया था,इसलिए हीं मैंने तुम्हें अपने दिल रूपी राष्ट्र पर तमाम अपने परिवार रूपी एन्टी नेशनलस के विरुद्ध जाकर तुम्हें अपने दिल पर बहुमत से सरकार बनाने का मौका दिया लेकिन तुम तो भारतीय नेताओं जैसे निकले अपने पटाने के मैनिफेस्टो दिखाकर निभाने के वक्त मुकर गए।लेकिन फिर भी मैं भारतीय मूर्ख जनता की तरह तुम्हें दुबारा अपने दिल की सत्ता में बहुतम में लाने के लिए प्रयास करूंगी क्योंकि मुझे मेरे अच्छे दिन चाहिए और हाँ तुम्हारा प्यार रूपी पंद्रह लाख भी।

अब तो पूस का भी महीना बीतने को आ गया है।कुहासा और धुँध का रूप धर के श्री मेघ राज बादल जी भी अपनी प्रेमिका राजकुमारी पृथ्वी से मिलने इस भूमण्डल पर आ पहुँचे हैं,किंतु तुम पता नहीं कहाँ इस तरह गायब हो गए हो जैसे गदहे के माथे से सिंघ गायब हो गया है।

इतने दिन से जो तुम भारत में आने वाले अच्छे दिन की तरह लापता हो तो इस लापता-वास में तुम्हारी प्रेम और एक लाख रुपया लेकर लौटने की ही आस है जो उस दिए कि भाँति मुझे लौ और हिम्मत प्रदान कर रही है जो राजा के महल में जल रही थी और एक गरीब आदमी धन के लिए उस दीपक की लौ को देखते हुए सम्पूर्ण रात यमुना के ठंडे जल में खड़े होकर रात गुजार दिया था।

आशा करती हूँ कि तुम जल्दी हीं लौटकर हमारे घर हमारा हाथ मांगने आओगे।जिस तरह सभी भारतीय बेसब्री से अच्छे दिन आने का और अर्थव्यवस्था के दुरुस्त होने के इन्तेजार में हैं, मैं भी उतनी हीं बेसब्री से तुम्हारा इन्तेजार कर रही हूँ।जल्दी आना।

तुमसे मिलने की व्यथा और तेरे आने के इन्तेजार में पौने तीन किलो वजन कम कर चुकी योर बिलभड
फुलगोभिया
ग्राम-लाठीपुर, जिला-संग्रामगंज
चुकंदर प्रदेश


               Photo-google


6 comments:

  1. फगुनिया को बोल बोल दो किसी और को खोज ले,

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    1. बहुत धन्यवाद भाई दीपांशु

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  2. आपके इस लेख को पढ़ कर हमारा मन एकदम हरिहरा गया है

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    1. बहुत धन्यवाद आपका अजनबी पाठक।

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  3. एतना दिन में फगुनिया का बियाह नहीं करवाए फगुनिया के बाबूजी वैसे अच्छा ही किए हमको लगता है चंद्रिका राय का हालत देख देख के सकुचा रहे होंगे कि कहीं फगुनिया के साथ वही ना हो जो हमारे तेज परताप भैया ऐश्वर्या भौजी के साथ कर दीहिन।

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    1. हाहा

      चंद्रिका राय जैसा मामला आज हमारे शहरी समाज में बहुत हो रहा है।लेकिन फुलगोभिया का व्याह होगा कि नहीं ई पर अभी संशय है।

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