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Wednesday, 22 May 2019

प्रेम पत्र भाग-३


प्राणनाथ गुलकंद
पिताजी के मार से उत्पन्न दर्द से निकलती हुई आह और आँखों से आँशुओ के रूप में बहती हुई प्रेम को तुमतक प्रेषित कर रही हूँ।स्वीकारना।

बाबा की कृपा से तुम ठीक होगे और आशा करती हूँ कि मेरे भाइयों द्वारा तुम्हारी हुई धुनाई के फलस्वरूप उत्पन्न चोट कम हो गई होगी और तुम फिर से चमक-दमक रहे होगे।

आज जब मेरे पिताजी तुम्हारे पत्र का नाम लेकर अचानक मुझे धड़ा-धड़ पीटने लगे तब पता चला कि तुमने मेरे लिए पिरेम पत्र लिखा था और वो बापू के हाथ लग गया है।का बताये तुमको,पिता जी हमको इतना कूटे हैं कि,गुर्दा,यकृत,हृदय और फेफड़ों का आपस में महागठबंधन हो गया है।देह चूर-चूर हो गया है,लेकिन तुम्हारे पिरेम का जो याद है वही कुछ-कुछ टॉनिक का काम करता है और पुनः देह में फुर्ती सी आ जाती है।

मैं तुम्हें क्या बताऊँ मेरी हालत उस बैगन के तरह हो चुकी है जो ऊपर से तो खूब बढिया दिखता है परन्तु अंदर से कनायल(सडा हुआ) होता है।पिता जी के द्वारा बेल्ट की पिटाई से बना ज़ख्म ठिक हो चुका है लेकिन दिल का घाव मारियाना ट्रेंच से भी ज्यादा गहरा होते चला जा रहा है और अगर तुम अपने प्यार रूपी मिट्टी उस गड्ढे में डालकर नहीं भरोगे तो कहीं एकदिन ऐसा न हो कि हम अपने दिल के घाव से उत्पन्न गड्ढे में गिरकर ही अपने प्राण को त्याग दें।

आपकी याद में दिल में इतना दर्द उठता है और आपसे विरह में इतना तड़पते हैं फिर भी ठीक से रो नहीं पाते हैं।आँशु आँख से निकलता है और पपनी पर हीं झूल के रह जाता है।लोर गाल पर भी नहीं सट पता है और पपनी पर हीं झूलते-झूलते सुख जाता है।

मेरी चाहत तो है कि तुम मेरी चाशनी बनो और मैं तुम्हारे उस प्रेम रूपी गुड़ के बने चाशनी में गर्म-गर्म जलेबी के तरह डूब जाऊँ।लेकिन पिता जी के द्वारा बेल्ट से पड़ी मार ने मेरे हर सपने को तोड़कर उसे चकनाचूर कर दिया है।सपनों के इतने टुकड़े हो चुके हैं कि अगर उसकी गणना करने बैठूँ तो सतो जन्म लग जायेगा।

कभी-कभी मन करता है कि भोरे-भोरे कटलहपुर-बैगनगंज वाली बुलेट ट्रैन पकड़ के तुम्हारे साथ भाग जाएँ लेकिन फिर ख्याल आता है कि हम मोदी जी जैसे फ़क़ीर थोड़े न हैं कि झोला उठाये और चल दिये।परिवार वालों के बारे में भी तो सोचना पड़ता है न!एक बात जान लो गुलकंद हम तुमसे पिरेम करते हैं लेकिन हमको स्वार्थी मत समझना।

तुम्हारे प्यार में घरवालों का ताना सुन-सुन के मेरा हालत इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के जैसा हो गया।अब तो घर में हुई किसी भी प्रकार के सभी गलतियों के लिए मुझे हीं सुनना पड़ता है।सब यही कहते हैं कि फूलगोभिया को बोलो कुछ भी बात सिर्फ गुलकंद वाला ही सुनाई देता है।लगता है इसके दिमाग का चिप गुलकंदवा हैक कर लिया है जैसे।

ई प्रेम पत्र जब तुमको मिल जाएगा तो कृप्या करके जवाब में दुबारा प्रेम पत्र नहीं लिखना।बाबूजी पिरेम पत्र पकड़ के बहुत कूटते हैं।ई दूसरी बार तुम्हारा पिरेम पत्र पकड़ाया है और हम कुटाये हैं।अबकी बार बाबूजी अगर धर लिए तो रोड पर लेटा के ऊपर से जेसीबी पार करवा देंगे।

पिरेम पत्र लिखने से अच्छा है कि मिलने आ जाइयेगा,हम भी सखी-सहेली के बहाना करके आ जाएँगे।अबकी आवे वाला शुक्ल पक्ष पंचमी को मिलने आइयेगा।उसदिन चुनाव के परिणाम की घोषणा है और हमारे बाबूजी और भइया लोग सब उसी में व्यस्त रहेंगे। वही जानकी माता के मंदिर के पीछे जो तालाब है उसके पार जो बूढ़ा बरगद का पेड़ है वहीं पर हम ठीक पौने चार बजे आपका इन्तेजार करेंगे।आशा करती हूँ तुम आओगे वरना याद रखना अगर तुमने तत्परता नहीं दिखाई तो इस बूथ को कोई और लूट के लेकर चला जायेगा और तुम भारतीय राजनीति दल जो विपक्ष में है  उसके जैसा  पेपियाते रह जाओगे।

और हाँ,पिताजी के द्वारा भेजे गए पत्र और उसके शब्दों के लिए माफ़ी मांगती हूँ।

तुम्हारे पिरेम को पाने केलिए अकबकाएल
फूलगोभिया उर्फ सब्जियों की रानी
ग्राम-लाठीपुर, जिला-संग्रामगंज
चुकंदर प्रदेश की निवासी                            【pc-:गूगल】

3 comments:

  1. मारुत जी जल्दी से इस श्रृंखला को समाप्त कर के प्रकाशकों से संपर्क करिए। हम तो फुलगोभिया आ गुलकंदवा के प्रेम पत्र का इंतजार उ दोनों से ज्यादा करते हैं।
    अद्भुत है आपकी लेखन शैली।

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  2. बाबा अमरनाथ जी की जय।

    आपकी कृपा और आपका सहयोग बना रहे बस।आपका एक-एक शब्द प्रेरणादायी है।बहुत शुक्रिया और आभार प्रमित बाबू।

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